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“लातों के भूत बातों से नहीं मानते” यह मुहावरा हममें से कई को बचपन से याद होगा! माँ की छड़ी की तेज मार पीठ पर पड़ते ही उनके मुंह से निकले इस मुहावरे को सुनकर हमारी जो घिग्घी बंधती और कंपकंपी छूटती थी क्या उसे भुलाया जा सकता है! वैसे ये मुहावरे, जिन्हें अंग्रेजी में ‘इडियम’ कहते हैं, संभवतः किसी भी सभ्यता के शब्दकोश की सबसे बड़ी संपत्ति है। ये मुहावरे कुछ ही शब्दों में एक चित्र से भी अधिक अनमोल और गहरा संदेश दे जाते हैं! चित्र में क्रोध, भय, आनंद, निराशा जैसी भावनाओं का अभाव होता है जिन्हें मुहावरे शब्दों के साथ जीवन दे देते हैं! इतना ही नहीं, इसके शब्दों में केवल एक संदेश ही निहित नहीं होता, बल्कि यह उस समय प्रचलित संस्कृति का आरेख अक्सर प्रगाढ़ता के साथ हमारे मस्तिष्क में सजीव कर देते हैं। उदाहरण के लिए, अध जल गगरी छलकत जाए को देखें – आधा भरा घड़ा शोर करता है – ये शब्द हमारे मस्तिष्क में सिर पर पानी का मटका लेकर मंद-मंद बातें करती घर की ओर जाती औरतों का बिंब प्रस्तुत करते हैं! इनडोर प्लम्बिंग और नल से तुरंत जल आपूर्ति की इस तथाकथित आधुनिक सभ्यता में अगर यह मुहावरा न होता तो शायद इस थोड़ी ही पुरानी सभ्यता को हम भूल चुके होते! आम के आम गुठलियों के दाम मुहावरे के बारे में तो क्या ही कहें – सुनते ही हमारे दिमाग में आम की ऐसी जीवंत छवि सामने आती है कि व्यापार के महत्वपूर्ण सिद्धांतों की बात करते-करते भी मुंह में पानी आ ही जाता है! साठ की अवस्था में वानप्रस्थ को अपनाते हुए जो कि वैदिक सामाजिक जीवन का तीसरा चरण है और जिसमें व्यक्ति को समाज का ऋण चुकाने की ओर आगे बढ़ने का निर्देश मिलता है, मैं वैदिक आचार को ध्यान में रखते हुए कार्यकलाप आरंभ कर रहा हूँ। आधुनिक और भावी पीढ़ी के लिए मुहावरों की विशाल भाषायी सांस्कृतिक विरासत को सँजोने और बढ़ावा देने के भाव ने मुझे यह परियोजना शुरू करने के लिए प्रेरित किया। आधुनिक युग का इलेक्ट्रोनिक मीडिया और उसी तरह यह वेबसाइट इस कार्य के लिए उत्कृष्ट माध्यम है। यह वैदिक संस्कृति संस्थानम् (www.mantrayoga.org) की एक पहल है। यद्यपि यह वेबसाइट हम हिन्दी के साथ शुरुआत कर रहे हैं, परंतु जल्द ही अन्य भारतीय भाषाओं के मुहावरे भी इस पोर्टल में सम्मिलित किए जाएंगे। उपयोगकर्ता अपनी अपनी पसंद की भाषा में अपने मुहावरे भी इस पोर्टल पर जोड़ पाएंगे। मैं अनुरोध करता हूँ कि आप बोलचाल और लेखन में इस वेबसाइट की जानकारी का उपयोग करें और अगली पीढ़ी तक इस ज्ञान को बढ़ाएँ। इस प्रयास में आपके किसी भी प्रकार के योगदान का हम स्वागत करते हैं!!

आभार

अकेला चना क्या भांड फोड़ेगा की कहावत किसी भी कार्य की सफलता में बहुत व्यक्तियों की आवश्यकता को दर्शाती है। वैदिक संस्कृति संस्थानम् भी आज निम्नलिखित व्यक्तियों के योगदान को हृदय से स्वीकार करती है और उन्हें धन्यवाद देती है । इस साइट के लिए प्रारंभिक डेटा एक अंग्रेजी सज्जन, एस डब्ल्यू फॉलन (१८१७-८०) के उल्लेखनीय काम का पुनर्वितरण है: हिंदुस्तानी कहावतों का एक शब्दकोश-आर सी टेम्पल और लाला फकीर चंद द्वारा संपादित और संशोधित। यह संकलन १८८६ में बनारस (वाराणसी) में छपा था। तब से भारतीय भाषाई संस्कृति का बहुत विस्तार हुआ है और हम अपने समकालीन योगदानकर्ताओं को भी अग्रिम धन्यवाद देते हैं।
वैभव श्रीवास्तव ने इस वेबसाइट को विकसित किया है। अल्पव्ययी, समयबद्ध और निष्ठापूर्ण तरीके से किए गए उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए हम उन्हें धन्यवाद देते हैं। डेटा प्रविष्टि का कठिन कार्य हरीश किरौला और राजनंदन केशरी द्वारा सुरेंद्र त्रिपाठी की कुशल देखरेख में किया गया था- हम उनके अथक प्रयासों के लिए भी आभारी हैं। इस संसार में किसी भी सत्कार्य की प्रेरणा और शक्ति महिलाएं ही हैं। मेरी प्यारी माँ और मेरी प्यारी पत्नी को धन्यवाद देने के लिए आज शब्द पर्याप्त नहीं हैं जिनकी प्रेरणा और सहयोग बिना यह प्रयास असफल ही रहता ।

शुभम अस्तु!

फाल्गुन शुक्ल पक्ष नवमी संवत २०७८; ११ मार्च २०२२
नोएडा, भारत